कर्नल राज्यवर्धन राठौड़: एक सैनिक का जीवन त्याग का प्रतीक और राष्ट्र का कर्तव्य
हमारे देश की भूमि पर अनेक वीरों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने जीवन की आहुति देकर 'सेवा परमो धर्म:' का पालन किया है। ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व हैं कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़। उनका जीवन केवल एक परिचय नहीं, बल्कि एक सैनिक के उस अटूट त्याग, साहस और कर्तव्यनिष्ठा की गाथा है, जो राष्ट्र के प्रति सम्मान की भावना को जन्म देती है।
एक सैनिक का जीवन सुख-सुविधाओं का नहीं, बल्कि संघर्ष और त्याग का पाठ पढ़ाता है। कर्नल राठौड़ ने भारतीय सेना में अपनी सेवा के दौरान इस त्याग को जिया। सीमा पर तैनात एक सैनिक के रूप में, उन्होंने अपनी निजी ज़िंदगी के सुखों को पीछे छोड़ते हुए देश की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। यह त्याग ही तो है जो एक सैनिक को साधारण मनुष्य से ऊपर उठाकर 'रक्षक' बना देता है।
लेकिन कर्नल राठौड़ की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने देश की सेवा के एक नए मोर्चे पर अपनी भूमिका निभाई - राजनीति के क्षेत्र में। एक सांसद और मंत्री के रूप में, उन्होंने देश के विकास और युवाओं के उत्थान के लिए कार्य किया। इससे स्पष्ट होता है कि एक सैनिक का दिल हमेशा देश के लिए धड़कता है, चाहे वह सीमा पर हो या संसद में।
"उसका सम्मान, राष्ट्र का कर्तव्य"
यह वाक्य केवल एक पंक्ति नहीं, बल्कि हम सभी नागरिकों के लिए एक सचेतन कर्तव्य है। जिस सैनिक ने हमारे सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, उसका सम्मान करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य बनता है। यह सम्मान सिर्फ तिरंगा लहराकर या जयहिन्द बोलने तक सीमित नहीं है। यह सम्मान उनके परिवारों की देखभाल करने, सैन्य कल्याणकारी योजनाओं का समर्थन करने और राष्ट्र के प्रति अपने स्वयं के कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाने में निहित है।
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ का जीवन हमें यही संदेश देता है। वह एक ऐसे भारतीय हैं जिन्होंने हर भूमिका में देश को सर्वोच्च स्थान दिया। आइए, हम उनके त्याग और सेवा को नमन करें और अपने दैनिक जीवन में उस राष्ट्रभक्ति की भावना को आत्मसात करें, जिसके लिए वे और उन जैसे असंख्य सैनिक जीवन जीते हैं।
जय हिंद!
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