कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ - संगम किनारे बड़े हनुमान जी के चरणों में
हमारे देश की सेना में वे जवान केवल एक सिपाही नहीं होते, बल्कि देशभक्ति, कर्तव्य और समर्पण की एक जीती-जागती मिसाल होते हैं। ऐसे ही एक वीर सपूत थे कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़। उनकी शहादत ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। लेकिन उनकी अंतिम यात्रा का एक पड़ाव, जो सबसे अधिक मर्मस्पर्शी और आत्मीय लगा, वह था प्रयागराज के संगम तट पर स्थित बड़े हनुमान जी के मंदिर में।
एक वीर की अंतिम विदाई
जब कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ की पवित्र अर्थी उनके अंतिम गंतव्य की ओर ले जाई जा रही थी, तब रास्ते में उन्हें प्रयागराज में संगम के किनारे स्थित बड़े हनुमान जी के मंदिर में ले जाया गया। यह वही स्थान है जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है, जिसे मोक्षदायिनी तीर्थ भी कहा जाता है।
शक्ति और भक्ति के प्रतीक के चरणों में
बड़े हनुमान जी इस इलाके के अत्यंत प्रसिद्ध और श्रद्धेय देवता हैं। हनुमान जी स्वयं भक्ति, शक्ति, और निष्ठा के प्रतीक हैं। एक सैनिक का जीवन भी इन्हीं मूल्यों पर चलता है। कर्नल राठौड़ की अर्थी को इन्हीं बजरंगबली के चरणों में रखा गया, मानो एक वीर योद्धा अपने अंतिम समय में उस परमशक्ति से आशीर्वाद ले रहा हो, जिसने उसे जीवन भर अपने कर्तव्य पालन की शक्ति दी।
एक भावनात्मक क्षण
यह दृश्य अत्यंत ही भावुक कर देने वाला था। पूरा मंदिर परिसर एक गहन श्रद्धा और सम्मान की भावना से सराबोर था। उनके साथी जवान, उनके परिवारजन और आम जनता, सभी की आँखों में एक सवाल था – एक सच्चे देशभक्त को अंतिम विदाई देते हुए एक अकथ्य पीड़ा। ऐसा लग रहा था मानो स्वयं हनुमान जी भी इस वीर सपूत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हों।
निष्कर्ष: अमर शहीद, चिर स्मरणीय
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ का संगम और बड़े हनुमान जी के चरणों में पहुँचना, केवल एक रस्म अदायगी नहीं थी। यह एक वीर की आत्मा का, उस सर्वोच्च शक्ति से मिलन था, जिसके लिए उसने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। यह प्रतीकात्मक था कि जिस तरह संगम में नदियाँ विलीन होकर भी अमर हो जाती हैं, उसी तरह एक शहीद की आत्मा भी शरीर छोड़ने के बाद इस देश की स्मृतियों और इतिहास में अमर हो जाती है।
हम सब उनके बलिदान को नमन करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को शांति मिले। जय हिंद, जय हनुमान।
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