कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ - ‘ग्रामोदय से राष्ट्रोदय' के पथप्रदर्शक, प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक व भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य, भारत रत्न राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन।



आज के दिन, जब हम राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख जी की जयंती मना रहे हैं, तो कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जी द्वारा दिए गए ये शब्द उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को सटीक रूप से परिभाषित करते हैं। नानाजी देशमुख सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक विचार, एक आंदोलन और एक जीवन पद्धति हैं।

एक संन्यासी का जीवन, एक साम्राज्य की नींव

नानाजी का जन्म 11 अक्टूबर, 1916 को महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनका पूरा जीवन त्याग, तपस्या और राष्ट्रनिर्माण की अनूठी मिसाल है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रचारक के रूप में उन्होंने अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई, लेकिन उनका मन तो समाज के मूल में, गाँवों में बसता था।

‘ग्रामोदय से राष्ट्रोदय’ का मंत्र

नानाजी देशमुख का मानना था कि भारत की वास्तविक शक्ति उसके गाँवों में निहित है। उन्होंने "ग्रामोदय से राष्ट्रोदय" (गाँवों के उत्थान से राष्ट्र का उत्थान) का महामंत्र दिया। इस विचार को साकार रूप देने के लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जैसे पिछड़े क्षेत्र को चुना और 'दीनदयाल शोध संस्थान' (DRI) की स्थापना की।

उन्होंने साबित कर दिखाया कि कैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन के स्तंभों पर खड़ा करके एक गाँव आत्मनिर्भर बन सकता है। उनके इस मॉडल ने न केवल चित्रकूट को बदल दिया, बल्कि पूरे देश के लिए एक रोल मॉडल प्रस्तुत किया।

एक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक

नानाजी देशमुख केवल समाज सुधारक ही नहीं, बल्कि एक गहन चिंतक भी थे। उनका राष्ट्रवाद केवल नारों तक सीमित नहीं था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और मूल्यों में निहित एक सकारात्मक और समावेशी विचार था। उन्होंने अपने लेखन और भाषणों के माध्यम से एक ऐसे भारत की कल्पना की, जो आधुनिकता और परंपरा के सर्वश्रेष्ठ तत्वों को आत्मसात करते हुए आगे बढ़े।

भारत रत्न और प्रेरणा का स्रोत

सादगी और ऊँचाई का जो अनूठा संगम नानाजी के जीवन में था, वह आज के दौर में दुर्लभ है। उन्हें 2019 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से विभूषित किया गया। यह सम्मान उनके अतुल्य योगदान का केवल एक प्रतीक है।

आज उनकी जयंती पर, हमें केवल श्रद्धासुमन अर्पित करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उनके दिखाए मार्ग, "ग्रामोदय से राष्ट्रोदय" के मार्ग पर चलने का संकल्प लेना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

कोटि-कोटि नमन

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