कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ - "आप सफलताओं से इतना नहीं सीखते, जितना असफलताओं से सीखते हैं"
हम सभी की जिंदगी में ऐसे पल आते हैं जब सफलता हमारे कदम चूमती है, और कुछ पल ऐसे भी आते हैं जब असफलता की कड़वाहट हमें अंदर तक हिला देती है। अक्सर हम सफलता के गीत गाते हैं, लेकिन असफलता से आँखें चुराने की कोशिश करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि असली सबक हमें किससे मिलता है?
कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ का यह कथन, "आप सफलताओं से इतना नहीं सीखते, जितना असफलताओं से सीखते हैं," कोई नारा भर नहीं है। यह उनके जीवन के अनुभवों से निचोड़ा गया एक सार है।
एक सैनिक के तौर पर, उन्होंने अनुशासन, रणनीति और हार न मानने की भावना सीखी। लेकिन जब वह ओलंपिक में भारत के लिए व्यक्तिगत सिल्वर मेडल जीतने वाले पहले शूटर बने, तो यह सफलता उनकी पिछली असफलताओं और सीखों की ही देन थी।
प्रैक्टिस के दौरान निशाने का चूकना, किसी बड़े टूर्नामेंट में अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन न कर पाना – ये सभी 'असफलताएँ' थीं। लेकिन कर्नल राठौड़ ने हर चूक का विश्लेषण किया। हर गलती से एक नई रणनीति बनाई। उन्होंने यह नहीं सोचा कि "मैं फेल हो गया," बल्कि यह सोचा कि "आज मैंने यह सीखा कि यह तरीका काम नहीं करता।"
हमारे जीवन के लिए सीख:
असफलता एक फीडबैक है, फैसला नहीं: जब कोई काम नहीं बनता, तो यह आपकी काबिलियत का फैसला नहीं है। यह सिर्फ इतना बताता है कि जिस तरीके से आपने कोशिश की, वह इस बार काम नहीं आया। तरीका बदलिए।
लचीलापन (Resilience) विकसित होता है: हर छोटी-बड़ी असफलता आपकी मानसिक मांसपेशियों को मजबूत करती है। अगली बार झटका लगने पर आप उतने नहीं हिलेंगे।
विनम्रता बनी रहती है: सफलता अक्सर अहंकार ले आती है, जबकि असफलता हमें विनम्र बनाती है और आत्म-विश्लेषण का मौका देती है।
अगली बार जब आपको कोई असफलता हाथ लगे, तो कर्नल राठौड़ के इन शब्दों को याद रखें। उस पल को सीख में बदल दें। क्योंकि जिस तरह लोहे को तपाकर ही फौलाद बनाया जाता है, उसी तरह असफलताओं की आग में तपकर ही एक साधारण इंसान असाधारण विजेता बनता है।
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