स्वामी दयानन्द सरस्वती: सत्य, शिक्षा और सामाजिक जागृति के अमर अग्रदूत



आज उस महान विभूति, आर्य समाज के संस्थापक और महान समाज सुधारक स्वामी दयानन्द सरस्वती जी की पुण्यतिथि है। इस पावन अवसर पर हम उन्हें कोटिशः नमन करते हैं।

स्वामी जी का सम्पूर्ण जीवन एक ऐसी मशाल की तरह था, जिसने अंधकार में भटकते समाज को सत्य का मार्ग दिखाया। उन्नीसवीं सदी का भारत जहाँ कुरीतियों, अंधविश्वासों और सामाजिक विषमताओं में जकड़ा हुआ था, वहाँ स्वामी दयानन्द ने 'वेदों की ओर लौटो' का ओजस्वी नारा दिया। यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी आह्वान था।

सत्य के प्रति अटल प्रतिबद्धता

उनका मानना था कि वेद ही सत्य के सर्वोच्च और अपरिवर्तनीय स्रोत हैं। उन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकांड और छुआछूत जैसी प्रथाओं का डटकर विरोध किया। उनकी दृष्टि में, ईश्वर एक है, निराकार है, और उसकी उपासना का मार्ग सीधा और सरल है। उनकी यह साहसिक स्थिति उस युग में एक चुनौती थी।

शिक्षा और नारी जागृति के पुरोधा

स्वामी दयानन्द ने शिक्षा को सामाजिक उत्थान की आधारशिला माना। उन्होंने न केवल महिलाओं और शूद्रों के लिए शिक्षा की वकालत की, बल्कि आधुनिक और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया। उनके प्रयासों ने देश में शिक्षा के प्रसार की एक नई लहर को जन्म दिया। नारी को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए उन्होंने बाल विवाह का विरोध और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।

हमारे लिए प्रेरणा

आज के दौर में, जब समाज में एक नए प्रकार का अंधविश्वास और भटकाव देखने को मिल रहा है, स्वामी दयानन्द सरस्वती का जीवन हमारे लिए और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। उनकी सीख – तर्क करो, प्रश्न करो, और सत्य को स्वीकार करो – हमें एक बेहतर इंसान और जिम्मेदार नागरिक बनने की राह दिखाती है।

उनकी पुण्यतिथि पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके बताए मार्ग पर चलेंगे, सत्य को अपनाएंगे, शिक्षा को बढ़ावा देंगे और एक जागरूक एवं समृद्ध समाज के निर्माण में अपना योगदान देंगे।

स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को कोटिशः नमन। ओ३म्।

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