कर्नल राज्यवर्धन राठौड़: फौज एक अध्याय नहीं, एक सफर है
हर बार जब मैं हमारे देश के गौरव सैनानियों से मिलता हूं, एक अलग ही एहसास होता है। यह कोई साधारण मुलाक़ात नहीं होती। यह एक ऐसा पल होता है जो आपके अंदर देशभक्ति की एक नई लहर दौड़ा देता है। और जब बात कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जी की हो, तो यह एहसास और भी गहरा हो जाता है।
क्या आपने कभी किसी की आंखों में चमक देखी है? वह चमक जो सिर्फ एक मिशन, एक जुनून से आती है? कर्नल राठौड़ की आंखों में आज भी वही चमक है। ओलंपिक में पदक जीतने वाले उस निशानेबाज का जोश, और फिर भारतीय सेना के उस अधिकारी का अनुशासन – यह सब कुछ उनके चेहरे पर साफ़ झलकता है।
समय बीत गया, पद बदल गए, लेकिन दिल में देश के लिए वही जुनून कायम है। वह एक सिपाही की तरह सोचते हैं, एक नेता की तरह काम करते हैं, और एक देशभक्त की तरह जीते हैं।
और यही बात मुझे उनकी उस बात की याद दिलाती है जो उन्होंने कही थी: "फौज अध्याय नहीं, एक सफर है।"
यह वाक्य इतना गहरा और सच्चा है। फौज में भर्ती होना, यूनिफॉर्म पहनना कोई नौकरी नहीं है, यह एक जीवनशैली का चुनाव है। यह एक ऐसा सफर है जो प्रशिक्षण से शुरू होता है और जीवन के आखिरी पल तक चलता रहता है। एक फौजी कभी रिटायर नहीं होता; वह बस अपनी ड्यूटी का तरीका बदलता है। उसका दिल, उसकी आत्मा हमेशा देश की सेवा के लिए तैयार रहती है।
कर्नल राठौड़ इस बात के जीते-जागते उदाहरण हैं। सेना में रहते हुए उन्होंने देश की रक्षा का दायित्व निभाया, और अब राजनीति के मैदान में वह देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। सफर जारी है...
ऐसे योद्धा हमें यह याद दिलाते हैं कि देशभक्ति सिर्फ सीमा पर लड़ने तक सीमित नहीं है। यह हर उस काम में है जो हम रोज़ अपने देश की तरक्की के लिए करते हैं।
आइए, हम सब मिलकर इस अनूठे सफर को सलाम करें। जय हिंद!

 
 
 
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