कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ - आगे बढ़ते जाना है!

 

कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ का नाम सुनते ही ज़हन में एक दृढ़-निश्चयी, बहादुर सैनिक और एक सफल शूटर की तस्वीर उभरती है। लेकिन उनकी असली कहानी तो उस पल शुरू हुई जब एक दुर्घटना ने उन्हें व्हीलचेयर तक सीमित कर दिया।

क्या कोई सोच सकता है कि एक पैरा-स्पोर्ट्स एथलीट, जो अपने पैरों से नहीं चल सकता, वह दुनिया की सबसे कठिन साइकिल रेस, 'रेस अक्रॉस अमेरिका' में हिस्सा लेगा? कर्नल राठौड़ ने यह कर दिखाया। उनके लिए, व्हीलचेयर एक सीमा नहीं, बल्कि एक नई गति का वाहन बन गई।

उनका जीवन-मंत्र सरल है - "आगे बढ़ते जाना है।"

यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है। इसका मतलब है कि चाहे हालात कितने भी विपरीत क्यों न हों, चाहे रास्ता कितना भी ऊबड़-खाबड़ क्यों न हो, आपको बस अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना है। एक कदम, फिर एक और कदम।

उन्होंने सिखाया है कि:

  • शारीरिक सीमाएं मानसिक सीमाएं नहीं बन सकतीं। आपका दिमाग और आपका जज़्बा आपके शरीर से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली है।

  • जीवन नई परिस्थितियों के अनुसार ढल जाता है। आपको बस अपने तरीके बदलने होंगे, अपने सपने नहीं।

  • हौसला बुलंद हो तो मंज़िल खुद-ब-खुद मिल जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion): कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ सिर्फ एक इंसान नहीं, एक जीती-जागती प्रेरणा हैं। वह हमें याद दिलाते हैं कि जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई बाहरी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि अपने भीतर के डर और हार मान लेने की प्रवृत्ति से है। अगली बार जब आप किसी मुश्किल का सामना करें, तो अपने आप से पूछें - "क्या मैं अभी भी आगे बढ़ रहा हूँ?" क्योंकि जब तक बस एक और कदम बढ़ाने की ताकत बाकी है, तब तक जीत आपसे दूर नहीं।

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