कर्नल राज्यवर्धन राठौड़: वो दिलों की कमाई, जो जनसेवा से पाई है।
हमारे देश में ऐसे व्यक्तित्व बहुत कम होते हैं जिनका जीवन इतना विविधतापूर्ण और प्रेरणादायक होता है कि वे हर पीढ़ी के लिए एक आदर्श बन जाते हैं। कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ऐसे ही एक चमकते सितारे हैं, जिनकी जीवन यात्रा सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं, बल्कि देशभक्ति, समर्पण और सेवा का एक जीवंत पाठ है।
उनके लिए यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है - "ये दिलों की कमाई है, जो जनसेवा से पाई है।"
एक सैनिक का सम्मान:
राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने सेना में एक अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान उन्होंने जो अनुशासन, त्याग और राष्ट्र के प्रति प्रेम सीखा, वह आजीवन उनकी पहचान बन गया। उनका सैन्य जीवन ही उनकी चरित्र की मजबूती की नींव है।
विश्व विजेता की गौरवगाथा:
सेना से जुड़े रहते हुए ही उन्होंने निशानेबाजी में अपना हुनर पहचाना। 2004 के एथेंस ओलंपिक में उन्होंने सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। यह मेडल सिर्फ एक पदक नहीं था, बल्कि पूरे देश के लिए एक नई उम्मीद, एक नया विश्वास था। इस जीत ने भारत को वैश्विक खेल मंच पर एक नई पहचान दिलाई।
राजनीति: सेवा का दूसरा पड़ाव:
सेना और खेल जगत से मिले सम्मान को पीछे छोड़ते हुए, उन्होंने जनसेवा का एक नया रास्ता चुना - राजनीति। यहाँ भी उन्होंने वही जुनून और ईमानदारी दिखाई। एक सांसद और मंत्री के रूप में उनके काम ने साबित किया कि उनके लिए पद एक सत्ता का साधन नहीं, बल्कि जनता की सेवा करने का एक माध्यम है।
क्यों है यह 'दिलों की कमाई'?
क्योंकि कर्नल राठौड़ ने जो कुछ भी हासिल किया है, वह ऊपर से नहीं, बल्कि अपने कर्म, अपने संघर्ष और लोगों की सेवा से कमाया है। एक सैनिक के रूप में देश की रक्षा, एक खिलाड़ी के रूप में देश का मान बढ़ाना और एक जनप्रतिनिधि के रूप में लोगों के जीवन में बदलाव लाना - यही तो असली कमाई है। यही कमाई उन्हें करोड़ों भारतीयों के दिलों पर राज करने का अधिकार देती है।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि सफलता का असली सुख और सच्चा सम्मान तब मिलता है जब आपका हर कदम आपके देश और समाज की भलाई के लिए उठे।
जय हिंद!

 
 
 
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